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शेख जेआरत हुशैन का जन्म सन् १८२९ मे बिहार के सीवान जिला के हथौरा गाँव मे एक जमीदार के घर हुआ था । जिनके वालिद का नाम शेख नादीर अली था और दादा का नाम शेख पैगम्बर बक्स था जेआरत के वालिद सात भाई थे जिनमें शेख मदद अली सबसे बड़े थे जिनकी शादी गोपालपुर के एक शिया परिवार में हुआ था शेख मदद अली पेसे से जमीदार और व्यवसाई थे काफी लम्बा चौड़ा कारोबार था और कई गांव में परिवार की जागीर थी। कई estate के मालिक थे जेआरत हुशैन के बचपन मे ही उनके वालिदैन का साया सर से उठ गया जिसके बाद उनके चाचा मदद अली ने उनकी परवरिस का जिम्मा लिया और उनको पढ़ने लिखने तथा पहलवानी करने पर जोर दी तथा हर तरह की सुविधाऐं मुहईया कराई जो एक पहलवान को होती थी उस जमाने में। अपने चाचा के बहुत प्यारे थे चुंकि चाचा के कोई औलाद नहीं थी और भतीजों मे जेआरत हुशैन सबसे बड़े और समझदार थे अपने बड़ो की काफी ईज्जत और फरमाबर्दार थे जिसके कारण परिवार और खानदान के लोग काफी प्यार-दुलार करते थे। जेआरत हुशैन अपने वालिदैन के इकलौते वारिस थे। जब जवानी पर पहुंचे तो उनके टक्कर का जवार मे कोई नहीं था नाही खुबसुरती मे ना ही ताकत में थोड़ा बहुत कोई टक्कर भी देता था तो वो थे गांव के ही शेख गुलाम जिल्लानी के लड़के शेख सिकंदर अली, जेआरत हुशैन और सिकंदर अली साथ मे ही कसरत करते थे डन्ड पेलते थे व्यायाम करते थे और काफी गहरी दोस्ती इन लोगो की,सिकंदर अली ने अपने जिंदगी के अधेड़ उमर तक पहलवानी की लेकिन जेआरत हुसैन ने चंद पहलवानी की थी और अपना नाम जवार मे बनाया था एक उनकी भिडंत महबुब नाम के बिहड़ पहलवान से हुई थी जिसको जेआरत हुशैन ने पछाड़ा था और कई बिहड़ पहलवानो को पछाड़ा था,एक कहावत है की पहवानी के पैतरा मे सिकंदर अली माहीर थे और ताकत में जेआरत हुशैन का कोई मुकाबला नहीं कर पाता था कुछ पहलवानी ही लड़े थे ही की उनके चाचा मदद अली का इंतकाल होगया जिसके बाद सारी जिम्मेदारी और व्यवसाय का जिम्मा जेआरत हुशैन के कंधो पर आगई। जिसके कारण उनको पहलवानी छोड़ी पड़ी। सन् १८५५-५६ में उनकी शादी हो गई हरीहाँस के बंगला पर। जेआरत हुशैन के दो लड़का और दो लड़कीं हुई सबसे बड़े लड़के का नाम जहुर हसन था जो जहांगीर खलीफा के साथ जवार मे कई अखाड़े मे पहलवानी लड़े थे। जहुर हसन की शादी गांव के खैर अली की लड़की बीबी खातुन से हुई जिने दे लड़के और दो लड़की हुई। जेआरत हुशैन के दुसरे लड़का का नाम तहुर हसन था जिनकी पहली शादी अलीहसन के लड़की से हुई थी जिनका नाम जैबुन था और दुसरी शादी सकिबन निसा से हुई थी जिनके चार लड़का और चार लड़की थी। और पहले लड़की का नाम बीबी सकीन था जिसकी शादी लियाकत हुसैन से हुई थी जिनके लड़के फसिहजमा तथा अंसरी खातुन थी। दुसरी लड़की का नाम बीबी तमीजुन था जिसकी शादी लियाकत हुसैन जिसके लड़के का नाम ऐनायत और लड़की का नाम आयसा वो थी। जेआरत हुशैन के जमीदारी के दौर मे तब एक बड़ा मोड़ आया जब उन्होन् हुशैनगंज के हवेली का एक estate खरिदा जब हुसैनगंज वालो से उस estate का लगान उसला नही जा रहा था धुम नगर के जोधी कोईरी से फिर जेआरत हुसैन ने उसको खरीदा तो उसपर चढ़ाई की तो जोधी कोईरी और उसके लोग उस estate पर कबजा करने के लिऐ पलानी बनाकर कबजा करने आऐ फिर दोनो तरफ से जंग हुई जिसके बाद दोनो तरफ से मुकदमा चला सारन मुंसिफ के पास फिर कलकत्ता हाईकाेर्ट मे चला वहां से भी जेआरत हुसैन की जीत हु और जेआरत हुसैन ऐसे मुकदमा लड़ते थे अपने मुखालिफ को मुकदमा लड़ने के चंदा देते थे। जेआरत हुसैन एक ऐसा नाम है जो अपने जीवन बहुत लोगो को बसाया, हथौड़ा एक ऐसा नाम जो अपने दौर मे हथौड़ा मे सबसे ज्यादा जमीन थी। तथा बल्ली मे भी बहुत जमीन थी। जेआरत हुसैन अपने पोतों मे सबसे ज्यादा अपने लड़के के बेटे अब्दुल रउफ को मानते थे और फिर मुहम्मद कामेआब को फिर और पोतो को। जेआरत हुसैन का वाक्या है कि जब वो पुरैना पर जाते थे तो रास्ते मे बासवाड़ी पड़ती थी अक्सर ऐसा होता है बांस बिखर कर निचे झुक जाता है लोग जाते थे तो बास को उठाकर पार कर जाते थे लेकिन जब जेआरत हुसैन जा रहे थे उन्होने बांस को हटाने के लिऐ खिचा तो साथ मे कई बांस जड़ से उखड़ गया इतना ताकत था। एक और वाक्या है जब खेत मे एक भैंसा पड़ा था तो जेआरत हुसैन और उनके पोता अब्दुल रउफ साथ मे खेत मे घुमने गऐ थे तो देखा की भैसा खेत मे चर रहा है तो पोता से बोले कि उसको हाक दो तो उनके पोता हाकने गऐ तो वो भैसा उनके पर पलटा तो वह पिछे हट गऐ और दादा से कहा ये हुरपेट रहा है तो जेआरत हुसैन ने कहा ठिक है रुका हम आरहे है और वो गऐ हे हे करके भैंसा गरदने पर एक घुसा मारे तो वो वही बैठ गया और मरते मर गया लेकिन वहां से उठा नहीं। जब देखा की वो उठ नहीं पाऐगा तो अपने पोता से बोले की उसको भुसा चोकर दोनो समय वहा लेकर जाकर देना है । जेआरत हुसैन ने कई जनकलयाण के कार्य भी किये है जैसे शेख जेआरत कब्रिस्तान वो ज॒नाजागाह तथा ईमामबाड़ा मे जमान दिया जिसमे आज मदरसा है मस्जिद मे भी कुछ जमीने दी है।जेआरत हुसैन के फौत के बात उनकी मिट्टी मजिल उनके ही दी हुई जमीन जो पहले सिरकटही कब्रिस्तान के नाम से जाना जाता था हाल नाम शेख जेआरत हुसैन कब्रिस्तान मे हुई।उनके फौत के उनकी सारी जिम्मेदारी बड़े पोते शेख अब्दुल रउफ ने सम्भाली और शेख कामेआब बहुत अच्छे तबीब थे।तहुर हसन के चार लड़के थे समसुल हक, तस्लिमुल हक,सलिमुल हक,अजीमुल हक,चार बेटी ताहेरुन निसा,मोजिबुन निसा और अजिबुन निसा जहुर हसन के दो लडके अब्दुल रउफ,मो कामेआब तथा दो लड़की रकिबुन निसा जौजे अजीजुल हक वल्द महबुब अली, भोजन निसा जौजे सईयद सुलेमान माहपुर(मो ईद्रिस बेटा) अबदुल रउप के एक लड़का मुहम्मद हाशीम पत्नी नुर सबा तथा लड़की तहरीमा खातुन पत्नी अंसार अहमद वल्द मोख्तार अहमद, मो कामेआब के चार लड़का थे और एक लड़की अली ईमाम पत्नी आबीद खातुन,मुहम्मद शुऐब पत्नी माजिदा खातुन,मो जुबार पत्नी फरजाना खातुन तथा मो जुनैद।
 
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शेख जेआरत हुसैन के नाम को जिंदा रखने के लिऐ शेख नाजीर एमाम वल्द शेख मुहम्मद जुबैर वल्द मुहम्मद कामेआब ने उनके नाम से कई तौजी थी उस जगह का नाम जेआरत नगर रख दिया है जो कई दसक से जाना जाता है तथा कब्रिस्तान का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है जो उन्होने जमीन कब्रिस्तान के लिऐ वक्फ की थी तथा जनाजागाह के लिऐ।हथौड़ा के ईतिहास मे एक सुनहरा नाम है शेख जेआरत हुसैन वल्द नादीर अली जो हमेसा याद किया जाऐगा।
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हमे अपने heritage पर फक्र है। उपर वाला हमारे सारे पुर्वज जो दुनिया से अलविदा हो चुके हैं उन्हे जन्नत मे जगह दे-आमीन
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#जेआरत नगर हथौड़ा।
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#जेआरत हुसैन कब्रिस्तान हथौड़ा।
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#जेआरत हुसैन ईमाम बाड़ा हाल मदरसा।
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#जेआरत हुसैन तलाब।
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।।।।।।।।।।।शेख नाजीर एमाम वल्द मुहम्मद जुबैर।।
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#If more forums seem to need setting up, please see [[Help:Forums]] - but a new "Forum:" page within an existing "forum" just follows forum's editbox procedure
 
#The '''Old Watercooler''' was closed off early in 2007. Some of its items were copied to pages here for ongoing discussion. What was left of it became its "Archive 3". See:
 
##[[Genealogy:Watercooler/Archive 1]] - last item 12 January 2006
 
##[[Genealogy:Watercooler/Archive 2]] - dates range from December 2005 to September 2006 apart from one reply dated December 2006
 
##[[Genealogy:Watercooler/Archive 3]] - the leftovers, including some really old material of enduring value; most new items started in or after late August 2006
 
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Revision as of 17:11, 2 August 2020

Sheikh Zeyarat Hussain Hathaura Siwan [[File:]]

File:FB IMG 15963767215995978.jpg
    शेख जेआरत हुशैन का जन्म सन् १८२९ मे बिहार के सीवान जिला के हथौरा गाँव मे एक जमीदार के घर हुआ था । जिनके वालिद का  नाम शेख नादीर अली था और दादा का नाम शेख पैगम्बर बक्स था जेआरत के वालिद सात भाई थे जिनमें शेख मदद अली सबसे बड़े थे जिनकी शादी गोपालपुर के एक शिया परिवार में हुआ था शेख मदद अली पेसे से जमीदार और व्यवसाई थे काफी लम्बा चौड़ा कारोबार था और कई गांव में परिवार की जागीर थी। कई estate के मालिक थे जेआरत हुशैन के बचपन मे ही उनके वालिदैन का साया सर से उठ गया जिसके बाद उनके चाचा मदद अली ने उनकी परवरिस का जिम्मा लिया और उनको पढ़ने लिखने तथा पहलवानी करने पर जोर दी तथा हर तरह की सुविधाऐं मुहईया कराई जो एक पहलवान को होती थी उस जमाने में। अपने चाचा के बहुत प्यारे थे चुंकि चाचा के कोई औलाद नहीं थी और भतीजों मे जेआरत हुशैन सबसे बड़े और समझदार थे अपने बड़ो की काफी ईज्जत और फरमाबर्दार थे जिसके कारण परिवार और खानदान के लोग काफी प्यार-दुलार करते थे। जेआरत हुशैन अपने वालिदैन के इकलौते वारिस थे। जब जवानी पर पहुंचे तो उनके टक्कर का जवार मे कोई नहीं था नाही खुबसुरती मे ना ही ताकत में थोड़ा बहुत कोई टक्कर भी देता था तो वो थे गांव के ही शेख गुलाम जिल्लानी के लड़के शेख सिकंदर अली, जेआरत हुशैन और सिकंदर अली साथ मे ही कसरत करते थे डन्ड पेलते थे व्यायाम करते थे और काफी गहरी दोस्ती इन लोगो की,सिकंदर अली ने अपने जिंदगी के अधेड़ उमर तक पहलवानी की लेकिन जेआरत हुसैन ने चंद पहलवानी की थी और  अपना नाम जवार मे बनाया था एक उनकी भिडंत महबुब नाम के बिहड़ पहलवान से हुई थी जिसको जेआरत हुशैन ने पछाड़ा था और कई बिहड़ पहलवानो को पछाड़ा था,एक कहावत है की पहवानी के पैतरा मे सिकंदर अली माहीर थे और ताकत में जेआरत हुशैन का कोई मुकाबला नहीं कर पाता था कुछ पहलवानी ही लड़े थे ही की उनके चाचा मदद अली का इंतकाल होगया जिसके बाद सारी जिम्मेदारी और व्यवसाय का जिम्मा जेआरत हुशैन के कंधो पर आगई। जिसके कारण उनको पहलवानी छोड़ी पड़ी। सन् १८५५-५६ में उनकी शादी हो गई हरीहाँस के बंगला पर। जेआरत हुशैन के दो लड़का और दो लड़कीं हुई सबसे बड़े लड़के का नाम जहुर हसन था जो जहांगीर खलीफा के साथ जवार मे कई अखाड़े मे पहलवानी लड़े थे। जहुर हसन की शादी गांव के खैर अली की लड़की बीबी खातुन से हुई जिने दे लड़के और दो लड़की हुई। जेआरत हुशैन के दुसरे लड़का का नाम तहुर हसन था जिनकी पहली शादी अलीहसन के लड़की से हुई थी जिनका नाम जैबुन था और दुसरी शादी सकिबन निसा से हुई थी जिनके चार लड़का और चार लड़की थी। और पहले लड़की का नाम बीबी सकीन था जिसकी शादी लियाकत हुसैन से हुई थी जिनके लड़के फसिहजमा तथा अंसरी खातुन थी। दुसरी लड़की का नाम बीबी तमीजुन था जिसकी शादी लियाकत हुसैन जिसके लड़के का नाम ऐनायत और लड़की का नाम आयसा वो थी। जेआरत हुशैन के जमीदारी के दौर मे तब एक बड़ा मोड़ आया जब उन्होन् हुशैनगंज के हवेली का एक estate खरिदा जब हुसैनगंज वालो से उस estate का लगान उसला नही जा रहा था धुम नगर के जोधी कोईरी से फिर जेआरत हुसैन ने उसको खरीदा तो उसपर चढ़ाई की तो जोधी कोईरी और उसके लोग उस estate पर कबजा करने के लिऐ पलानी बनाकर कबजा करने आऐ फिर दोनो तरफ से जंग हुई जिसके बाद दोनो तरफ से मुकदमा चला सारन मुंसिफ के पास फिर कलकत्ता हाईकाेर्ट मे चला वहां से भी जेआरत हुसैन की जीत हु और जेआरत हुसैन ऐसे मुकदमा लड़ते थे अपने मुखालिफ को मुकदमा लड़ने के चंदा देते थे। जेआरत हुसैन एक ऐसा नाम है जो अपने जीवन बहुत लोगो को बसाया, हथौड़ा एक ऐसा नाम जो अपने दौर मे हथौड़ा मे सबसे ज्यादा जमीन थी। तथा बल्ली मे भी बहुत जमीन थी। जेआरत हुसैन अपने पोतों मे सबसे ज्यादा अपने लड़के के बेटे अब्दुल रउफ को मानते थे और फिर मुहम्मद कामेआब को फिर और पोतो को। जेआरत हुसैन का वाक्या है कि जब वो पुरैना पर जाते थे तो रास्ते मे बासवाड़ी पड़ती थी अक्सर ऐसा होता है बांस बिखर कर निचे झुक जाता है लोग जाते थे तो बास को उठाकर पार कर जाते थे लेकिन जब जेआरत हुसैन जा रहे थे उन्होने बांस को हटाने के लिऐ खिचा तो साथ मे कई बांस जड़ से उखड़ गया इतना ताकत था। एक और वाक्या है जब खेत मे एक भैंसा पड़ा था तो जेआरत हुसैन और उनके पोता अब्दुल रउफ साथ मे खेत मे घुमने गऐ थे तो देखा की भैसा खेत मे चर रहा है तो पोता से बोले कि उसको हाक दो तो उनके पोता हाकने गऐ तो वो भैसा उनके पर पलटा तो वह पिछे हट गऐ और दादा से कहा ये हुरपेट रहा है तो जेआरत हुसैन ने कहा ठिक है रुका हम आरहे है और वो गऐ हे हे करके भैंसा गरदने पर एक घुसा मारे तो वो वही बैठ गया और मरते मर गया लेकिन वहां से उठा नहीं। जब देखा की वो उठ नहीं पाऐगा तो अपने पोता से बोले की उसको भुसा चोकर दोनो समय वहा लेकर जाकर देना है । जेआरत हुसैन ने कई जनकलयाण के कार्य भी किये है जैसे शेख जेआरत कब्रिस्तान वो ज॒नाजागाह तथा ईमामबाड़ा मे जमान दिया जिसमे आज मदरसा है मस्जिद मे भी कुछ जमीने दी है।जेआरत हुसैन के फौत के बात उनकी मिट्टी मजिल उनके ही दी हुई जमीन जो पहले सिरकटही कब्रिस्तान के नाम से जाना जाता था हाल नाम शेख जेआरत हुसैन कब्रिस्तान मे हुई।उनके फौत के उनकी सारी जिम्मेदारी बड़े पोते शेख अब्दुल रउफ ने सम्भाली और शेख कामेआब बहुत अच्छे तबीब थे।तहुर हसन के चार लड़के थे समसुल हक, तस्लिमुल हक,सलिमुल हक,अजीमुल हक,चार बेटी ताहेरुन निसा,मोजिबुन निसा और अजिबुन निसा जहुर हसन के दो लडके अब्दुल रउफ,मो कामेआब तथा दो लड़की रकिबुन निसा जौजे अजीजुल हक वल्द महबुब अली, भोजन निसा जौजे सईयद सुलेमान माहपुर(मो ईद्रिस बेटा) अबदुल रउप के एक लड़का मुहम्मद हाशीम पत्नी नुर सबा तथा लड़की तहरीमा खातुन पत्नी अंसार अहमद वल्द मोख्तार अहमद, मो कामेआब के चार लड़का थे और एक लड़की अली ईमाम पत्नी आबीद खातुन,मुहम्मद शुऐब पत्नी माजिदा खातुन,मो जुबार पत्नी फरजाना खातुन तथा मो जुनैद।

शेख जेआरत हुसैन के नाम को जिंदा रखने के लिऐ शेख नाजीर एमाम वल्द शेख मुहम्मद जुबैर वल्द मुहम्मद कामेआब ने उनके नाम से कई तौजी थी उस जगह का नाम जेआरत नगर रख दिया है जो कई दसक से जाना जाता है तथा कब्रिस्तान का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है जो उन्होने जमीन कब्रिस्तान के लिऐ वक्फ की थी तथा जनाजागाह के लिऐ।हथौड़ा के ईतिहास मे एक सुनहरा नाम है शेख जेआरत हुसैन वल्द नादीर अली जो हमेसा याद किया जाऐगा। हमे अपने heritage पर फक्र है। उपर वाला हमारे सारे पुर्वज जो दुनिया से अलविदा हो चुके हैं उन्हे जन्नत मे जगह दे-आमीन

  1. जेआरत नगर हथौड़ा।
  2. जेआरत हुसैन कब्रिस्तान हथौड़ा।
  3. जेआरत हुसैन ईमाम बाड़ा हाल मदरसा।
  4. जेआरत हुसैन तलाब।

।।।।।।।।।।।शेख नाजीर एमाम वल्द मुहम्मद जुबैर।।